जिस तरह मनुष्य को स्वतंत्रता, सम्मान और न्याय का अधिकार है उसी प्रकार पशुओं को भी पीड़ा रहित जीवन जीने का अधिकार है. ऐसा सिर्फ मैं नहीं कह रही बल्कि हमारा संविधान भी पशुओं के लिए इंसानों जैसे अधिकार होने की बात कहता है. 10 दिसंबर को जब पूरा विश्व मानवाधिकार दिवस मना रहा है, तब ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें आज ही के दिन अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस होने की भी जानकारी है!
यह कोई संयोग नहीं है बल्कि इंसानों को जानवरों के प्रति संवेदनशील बनाने का एक सुनियोजित दिन है, जिसकी शुरुआत 1998 में एक पशु अधिकार समूह अनकेज्ड द्वारा की गई. इस तिथि को सिर्फ इसलिए चुना गया ताकि पशु और मानव अधिकारों के बीच संबंध को उजागर किया जा सके, या यूं कहें इन दोनों के अधिकारों के बीच समानता के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके.
बढ़ती जा रही पशुओं के प्रति इंसानों की क्रूरता
सोचने वाली बात है कि आखिर क्यों किसी संगठन को जानवरों के प्रति इंसानों की संवेदनशीलता जगाने के लिए एक विश्वव्यापी पहल शुरू करनी पड़ी! इसकी एक प्रमुख वजह का हालिया उदाहरण उत्तर प्रदेश के मेरठ से लिया जा सकता है जहां दो महिलाओं ने सिर्फ इसलिए कुत्ते के पांच नवजात पिल्लों को पेट्रोल डालकर जिन्दा जला दिया क्योंकि वह ठंड की वजह से कराहते थे, और महिलाओं की शांति में खलल पैदा होती थी.
इंसानों द्वारा पशुओं के प्रति क्रूरता का यह कोई एकलौता मामला नहीं है. एक शोध से यह भी पता चलता है कि इंसानों के साथ होने वाली हिंसा कहीं न कहीं जानवरों के प्रति क्रूरता का कारण बनती है. कई मामलों में इसकी वजह बाल दुर्व्यवहार, घरेलू हिंसा, बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और अन्य हिंसक व्यवहार के रूप में देखने को मिलती है. लेकिन एक सच ये भी है कि इससे इंसानों को जानवरों के प्रति हिंसक रवैया अपनाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है. कई बार हम अपने स्वार्थ के आगे यह भूल जाते हैं कि पशु भी संवेदनशील जीव हैं और हमारी ही तरह उनके भी जीवन के मूलभूत अधिकार हैं.
पशुओं के अधिकारों की उपेक्षा
हम मानव अधिकारों को लेकर तो जागरूक हैं, जैसे जीवन का अधिकार, भोजन, शिक्षा, काम, स्वास्थ्य या स्वतंत्रता का अधिकार, लेकिन नैतिकता और करुणा के आधार पर मानवाधिकार और पशु अधिकार के बीच की समानता से आज तक अनजान बने हुए हैं. हम हर बार यह समझने में चूक कर देते हैं कि दोनों ही दिवस सह-अस्तित्व और शांति की आवश्यकता पर जोर देते हैं. यह हमें बताते हैं कि जीवों के अधिकारों की रक्षा, हम इंसानों के अधिकारों की सुरक्षा से ही जुड़ी है. लेकिन हम अक्सर अपने मनोरंजन के लिए पशुओं का शोषण, पालतू पशुओं के साथ दुर्व्यवहार, और उनकी देखभाल की उपेक्षा करके, उनके अधिकारों को अनदेखा कर जाते हैं.
संविधान, कानून और मौलिक जिम्मेदारी
हमें भारतीय संविधान में हमारे अधिकारों की तो जानकारी है लेकिन बेजुबानों को मिले अधिकारों की जानकारी नहीं है. हमें पता होना चाहिए कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ए (जी) हम पर जीवों की रक्षा करने और सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया रखने की मौलिक जिम्मेदारी डालता है. इसका अर्थ है कि जानवरों को भी दया के साथ व्यवहार मिलने का समान अधिकार है. हालांकि इस जिम्मेदारी को अनदेखा करने पर दंड का भी प्रावधान है. बेशक कुछ मामलों में दण्डनात्मक कार्रवाई बेहद मामूली है, जो जानवरों के साथ अपराध के प्रोत्साहन का कारण भी है लेकिन कुछ मामलों में आपको कारावास की सजा तक काटनी पड़ सकती है.
प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11(1) के अनुसार पालतू जानवर को लावारिस छोड़ने, भूखा रखने, नुकसान पहुंचाने या भूख-प्यास से उसकी मौत होने पर आपके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है. किसी भी जानवर को चोट पहुंचाना या किसी भी प्रकार से उसके जीवन में व्यवधान पैदा करना भी अपराध की श्रेणी में आता है. जिसके लिए 25 हजार तक जुर्माना और 3 साल तक की सजा हो सकती है. ऐसे ही कुछ अन्य मामलों में 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान भी है. हालांकि इन सब बातों के पीछे एक प्रश्न यह भी है कि जानवरों के खिलाफ अपराध तो लगभग हर रोज होते हैं लेकिन अपराध का दोषी कितनों को बनाया जाता है और कितनों को जुर्माना या जेल की सजा भुगतनी पड़ती है!
समान अधिकार की भावना से जागेगी संवेदनशीलता
दशकों से जानवरों के प्रति अप्रिय व्यवहार, हमारी जीवनशैली का हिस्सा बन गया है, जिसमें रातों रात किसी आश्चर्यचकित परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन बदलाव की शुरुआत जरूर की जा सकती है. मानव अधिकार हों या पशु अधिकार, हमें समझना होगा कि दोनों अधिकार एक-दूसरे के खिलाफ नहीं बल्कि पूरक हैं. हमारा अस्तित्व एक ही है, तो सभी जीवों के प्रति करुणा और सम्मान की भावना भी एक ही होनी चाहिए. इसके लिए बस नीरव पशुओं के प्रति अपने मौलिक कर्तव्यों को ध्यान में रखने और उन्हें ईमानदारी से निभाने की जरुरत है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि, पशु-पक्षियों के भीतर भी प्रेम भाव होता है और मनुष्यों के साथ उनका जुड़ाव भी प्रेम के आधार पर ही होता है. भले उनके पास जुबान नहीं होती लेकिन वह दिल की भाषा बखूबी समझते हैं. उनके प्रति दयाभाव हमें न केवल एक सरल इंसान बनाती है बल्कि एक बेहतर व्यक्तित्व निखार की ओर भी अग्रसर करती है.
तो आइए, इस अंतर्राष्ट्रीय पशु अधिकार दिवस पर संकल्प लें कि हम केवल मानवाधिकारों की रक्षा की बात नहीं करेंगे बल्कि उन बेजुबानों के जीवन की भी रक्षा सुनिश्चित करेंगे, जो हमसे केवल प्रेम की भाषा से जुड़ना जानते हैं, और हमसे खुद की सुरक्षा की उम्मीद करते हैं. फिर अंत में महात्मा गांधी के इस कथन को भी याद रखें कि किसी राष्ट्र की महानता और उसकी नैतिक प्रगति इस बात से आंकी जा सकती है कि वह अपने पशुओं के साथ कैसा व्यवहार करता है.
(नोट: यह लेख तेजस्विनी गुलाटी ने लिखा है, जो पेशे से सायकॉलजिस्ट एवं पशु कल्याण कार्यकर्ता हैं)